Share Market Full Details Hindi 2025

क्या आप भी शेयर मार्केट में इन्वेस्ट कर करोड़पति बनना चाहते है? तो इसके लिए सबसे पहले आपको शेयर मार्केट के बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए। किस तरह से एक अच्छी कंपनी को चुनकर उसमें इन्वेस्ट करे ताकि वो मल्टीबैगर स्टॉक बन सके। इस पोस्ट में हम Share Market Full Details Hindi की पूरी जानकारी देने जा रहे है। तो ध्यानपूर्वक पूरी पोस्ट को पढ़ें और अच्छे से समझने की कोशिश करे।

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What is Share Market in Hindi ( शेयर बाजार क्या है)

(स्टॉक मार्केट) शेयर बाजार एक ऐसा बाजार है जहां किसी भी कंपनी के शेयर का खरीद बिक्री होता है। आसान भाषा में बोले तो जिस तरीके से एक बाजार में समानों की खरीद और बिक्री होती है ठीक उसी तरह।

इस बाजार में कंपनियां अपने इन्वेस्टर से पैसा लेती है अपनी बिज़नेस को और बढ़ाने के लिए और बदले में अपनी कंपनी का शेयर देती है। इससे कंपनी और इन्वेस्टर दोनों को फायदा होता है।

Importance of Share Market (शेयर बाजार का महत्व)

शेयर बाजार कंपनियों के लिए पैसे जुटाने का एक अच्छा मंच है। कंपनियां अपने कुछ हिस्से पब्लिक करके पैसा उठाती है और बिजनेस बढ़ाती है। इससे कंपनियों को ये फायदा होता है कि कंपनियों को बिना लोन के पैसे मिल जाते है जिसपे उनको कोई ब्याज नहीं देना पड़ता है। बाद में जब कंपनी के प्रमोटर्स के पास पैसा होता है तो वो वापस अपने शेयर को पब्लिक से खरीद सकती है। साथ में शेयर होल्डर को कंपनी प्रॉफिट का डिविडेंड देती है जिससे इन्वेस्टर्स को भी फायदा होता है।

History of Indian Share Market (भारत के शेयर बाजार का इतिहास)

भारतीय शेयर बाजार का इतिहास बहुत ही पुराना है। Bombay Stock Exchange (BSE) को एशिया का सबसे पुराना स्टॉक एक्सचेंज माना जाता है। इसकी स्थापना सन 1875 ईस्वी में हुआ था। पहले “The Native Stock Broker Association” के रूप में स्थापना हुई थी। बाद में नाम बदलकर बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज कर दिया गया।

BSE की शुरुआत 1850 में एक बरगद के पेड़ के नीचे किया गया था। यहां लोग इकठ्ठा होते ओर शेयरों की सौदेबाजी करते थे। धीरे धीरे लोगों ने एक स्थाई जगह का चुनाव किया जो आज दलाल स्ट्रीट के नाम से जाना जाता है। वहीं बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज का ऑफिस बनाया गया।

Basics of Share Market ( शेयर बाजार की बुनियादी जानकारी)

शेयर मार्केट के शहंशाह बनने के लिए सबसे पहले मार्केट के जरूरी टर्म और डेफिनेशन जानना बहुत जरूरी है। बिना शेयर मार्केट की बेसिक जाने इसमें आत्महत्या करने जैसी है। इसलिए पहले मार्केट के बुनियादी चीजों का मतलब समझ में आना चाहिए।

What is Stock/Share (शेयर या स्टॉक क्या होता है)

Share या Stock ये दोनों टर्म को लोग एक समझ लेते है लेकिन ऐसा नहीं है। इसमें बहुत अंतर है। तो समझते है शेयर और स्टॉक में अंतर –

Stock – सबसे पहले जब कंपनियां स्टॉक इचेंज पे अपना IPO लाती है तो वो एक स्वामित्व अपने खरीदार को देती है जिसे स्टॉक कहते है। जैसे Indian Stock Market में करीब 5000+ स्टॉक लिस्टेड है। मतलब पांच हजार से ज्यादा कंपनियों ने NSE BSE पे अपनी कंपनी को पब्लिक कर रखी है। ऐसे ही दुनिया भर में लाखों कंपनियों दुनिया के अलग अलग एक्सचेंज पे लिस्टेड है। शॉर्ट में बोले तो स्टॉक किसी कंपनी का एक हिस्सा या इक्विटी।

Share – शेयर स्टॉक की सबसे छोटी इकाई है। किसी भी लिस्टेड कंपनी के स्टॉक का एक हिस्सा ही शेयर है। जब हम किसी कंपनी में इन्वेस्ट करते है तो उस कंपनी के शेयर खरीदते है। कंपनियां जब मार्केट में लिस्ट होती है तो वो अपने वैल्यू को शेयर के टुकड़ों में बांटती है जिसे निवेशक खरीदकर उस कंपनी का शेयर होल्डर बनते है और कंपनी के प्रॉफिट लॉस में साथ रहते है।

Definition of IPO ( Initial Public Offering की परिभाषा)

Initial Public Offering (IPO) एक प्रक्रिया है जिससे एक निजी कंपनी अपने कंपनी के अधिकार को पब्लिक करती है। आसान भाषा में बोले तो कंपनी अपने शेयर को पहली बार पब्लिक के सामने बेचती है। ये प्रक्रिया स्टॉक मार्केट एक्सचेंज पे लिस्टिंग के माध्यम से पूरी होती है।फिर पब्लिक आसानी से कंपनी के शेयर की खरीद बिक्री करती है

What is Dividend or Capital Gains

Dividend (लाभांश):- जब आप किसी कंपनी के शेयर खरीदते है और वो कंपनी प्रॉफिट कमाती है तो कंपनी अपने प्रॉफिट का कुछ हिस्सा अपने शेयरहोल्डर को देती है जिसको dividend कहते है।

जैसे :- कोई कंपनी 1,00,000 रुपया प्रॉफिट कमाई और कंपनी 20,000 का डिविडेंड देगी और आपके पास 10 शेयर है तो एक रुपया पर शायर डिविडेंड देती है तो आपको 10₹ डिविडेंड मिलेगा।

Capital Gains (पूंजीगत लाभ):- जब आप किसी कंपनी के शेयर, प्रॉपर्टी, सोना या फिर क्रिप्टोकरेंसी खरीदते है और उसे जितना प्रॉफिट कर बेचते है तो उसे Capital gains कहा जाता है।

जैसे:- मान लीजिए कि आप 100₹ का एक शेयर खरीदे और उसे 200₹ में बेच दिए तो आपको 100₹ प्रॉफिट हुआ वही कैपिटल गेन्स हुआ।

What is Bull and Bear Market

Bull Market:- जब बाजार में तेजी होती है और शेयरों या किसी भी संपतियों की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी होती है तो उसे Bull Market कहते है। ये मार्केट निवेशकों को अपनी ओर आकर्षित करता है मार्केट में और निवेश करने के लिए।

Bear Market:- जब बाजार में तेज गिरावट हो और शेयरों की कीमतों में लगाकार गिरावट हो तो उसे Bear Market कहते है। जब मार्केट में शेयर की कीमत अपने उच्चतम स्तर से 20% या उससे ज्यादा गिर जाता है तो समझा जा सकता है कि Bear Market शुरू हो चुका है। इस समय निवेशक पैनिक करते है और इन्वेस्ट करने से कतराते है।

Structure of the Share Market (शेयर मार्केट की संरचना)

Primary Market ( प्राथमिक बाजार)

वह बाजार जहां कंपनियां सबसे पहले अपने कंपनी को पब्लिक कर शेयर बेचती है तो वो Primary Market कहलाती है। प्राथमिक बाजार में किसी कंपनी के शेयर सबसे पहले IPO में Bet कर ही खरीदा जा सकता है। मतलब अगर आपने IPO के लिए लगाया और आपको IPO allot हो गया तो ही Initial Price पर शेयर आपको मिलेगा। इस बाजार से कंपनिया मुख्य रूप से IPO, FPO, Private Placement, Right Issue और E-Auction के जरिए पैसा जुटाती है।

Secondary Market (द्वितीयक बाजार)

Secondary Market ( द्वितीयक बाजार) वह बाजार है जहां पहले से जारी किए गए शेयर पर खरीद बिक्री होती है। यह खरीद बिक्री एक एक्सचेंज पर होती है जैसे भारत के NSE, BSE, America के NASDAQ, Down Jones इत्यादि। इस बाजार की भूमिका होती है शेयरों की तरलता और खरीद बिक्री की प्रक्रिया को सुगमता प्रदान करना। शेयर की कीमत मांग और आपूर्ति पर निर्धारित होती है।

Stock Exchange BSE & NSE

भारत में दो प्रमुख स्टॉक स्केचेज हैं – NSE (नेशनल स्टॉक एक्सचेंज) और BSE (बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज). आइए जानते है दोनों के बारे में विस्तार से।

BSE (बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज)

  • 1875 में BSE की स्थापना हुई थी।
  • यह एशिया का सबसे बड़ा स्टॉक एक्सचेंज है।
  • इसका प्रमुख index Sensex है जो 30 प्रमुख कंपनियों को ट्रैक करता है।
  • 1995 में BSE को ओपन क्राइ सिस्टम से इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग सिस्टम में बदला गया।

NSE (नेशनल स्टॉक एक्सचेंज)

  • 1992 में NSE की स्थापना हुई और 1993 में मान्यता प्राप्त हुई।
  • यह भारत का पहला स्वचालित और इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग सिस्टम है।
  • इसका प्रमुख index Nifty 50 है जो 50 प्रमुख कंपनियों को ट्रैक करता है।

Role of Regulatory Body (sebi की भूमिका)

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) का मुख्य उद्देश्य भारत में शेयर बाजार को नियंत्रित और संरक्षित करना है। इसकी स्थापना 1992 में हुआ था और इसका मुख्यालय मुंबई में स्थित है। SEBI निवेशकों के हितों की रक्षा करने, पूंजी बाजार को सुव्यवस्थित तरीके से चलाने, और नियमों के उल्लंघन को रोकने के लिए काम करता है। इसलिए SEBI भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है।

SEBI की प्रमुख भूमिकाएँ:

  • निवेशकों की सुरक्षा: SEBI निवेशकों को धोखाधड़ी और गलत व्यापारिक गतिविधियों से बचाने के लिए नियम बनाता है और उनका पालन सुनिश्चित करता है।
  • नियामक और विकासात्मक कार्य: यह स्टॉक एक्सचेंज और दलालों पर निगरानी रखता है, और पूंजी बाजार में पारदर्शिता और विकास को बढ़ावा देता है।
  • विनियमन: SEBI वित्तीय उत्पादों जैसे म्यूचुअल फंड, IPOs, और बॉन्ड की प्रक्रिया को नियंत्रित करता है, ताकि बाजार में स्थिरता बनी रहे।
  • जांच और दंड: SEBI किसी भी अनियमितता की जांच करता है और दोषियों पर जुर्माना लगाता है।

Brokers, Retailers, Domestic & Institutional Investors

  • दलाल (Brokers) : दलाल निवेशकों और स्टॉक एक्सचेंज के बीच एक कड़ी का काम करते हैं। वे निवेशकों की ओर से शेयर खरीदने और बेचने का कार्य करते हैं। दलाल सलाह, तकनीकी विश्लेषण और सटीक रणनीतियों के माध्यम से निवेशकों को सही निर्णय लेने में मदद करते हैं। Angelone, IND Money, Zerodha, Grow आदि Brokers का काम करता है।
  • खुदरा निवेशक (Retailers): खुदरा निवेशक छोटे पैमाने पर पूंजी लगाते हैं। ये व्यक्तिगत निवेशक होते हैं जो अपने बचत को शेयर, बॉन्ड या म्यूचुअल फंड में निवेश करते हैं। इनका उद्देश्य दीर्घकालिक लाभ अर्जित करना होता है। भारतीय बाजार में खुदरा निवेशकों की संख्या बढ़ रही है, जिससे बाजार अधिक गतिशील हुआ है।
  • घरेलू निवेशक (Domestic Investors): घरेलू निवेशक स्थानीय स्तर पर अपना निवेश करते हैं। इनमें व्यक्तिगत और संस्थागत निवेशक दोनों आते हैं। इनका निवेश आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करता है और देश की वित्तीय स्थिरता में योगदान देता है।
  • संस्थागत निवेशक (Institutional Investors): ये बड़े वित्तीय संस्थान, जैसे बैंक्स, बीमा कंपनियाँ और पेंशन फंड होते हैं। इनका निवेश बड़े पैमाने पर होता है, जो बाजार में स्थिरता और तरलता को बनाए रखने में सहायक है। संस्थागत निवेशक बाजार पर गहरा प्रभाव डालते हैं।

How Share Market Works (शेयर बाजार कैसे काम करता है)

इतना बड़ा साम्राज्य कैसे काम करता है? चलिए समझते है।

Buying & Selling Process (खरादने और बेचने की प्रक्रिया)

शेयर बाजार एक ऐसा मंच है जहाँ निवेशक कंपनियों के शेयर खरीदते और बेचते हैं। यह प्रक्रिया प्रमुख रूप से दो बाजारों में होती है— प्राथमिक बाजार और द्वितीयक बाजार।

खरीदने की प्रक्रिया (Buying Process)


1. बाजार अनुसंधान – निवेशक पहले कंपनियों की वित्तीय स्थिति, बाजार प्रवृत्तियों और संभावित लाभों का मूल्यांकन करते हैं। 
2. ट्रेडिंग अकाउंट खोलना – शेयर खरीदने के लिए निवेशकों को एक डीमैट और ट्रेडिंग अकाउंट खोलना होता है। 
3. ऑर्डर देना – निवेशक स्टॉक एक्सचेंज (जैसे BSE, NSE) के माध्यम से ऑनलाइन या ब्रोकर के जरिए शेयर खरीदने का आदेश देते हैं। 
4. लेन-देन की प्रक्रिया – शेयर खरीदे जाने के बाद वे निवेशक के डीमैट अकाउंट में जमा हो जाते हैं।

बेचने की प्रक्रिया (Selling Process)


1. मूल्यांकन – निवेशक सही समय पर शेयर बेचने के लिए उनके वर्तमान मूल्य और बाज़ार की स्थिति का विश्लेषण करते हैं। 
2. सेल ऑर्डर देना – निवेशक अपने ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म या ब्रोकर के जरिए शेयर बेचने का आदेश देते हैं। 
3. लेन-देन पूरा होना – बेचने के बाद निवेशक को शेयर की बिक्री राशि उनके बैंक खाते में प्राप्त होती है। 

Types of Trading

Share Market में ट्रेडिंग के कई रूप हैं, जो निवेशकों की अलग-अलग जरूरतों, जोखिम लेने की क्षमता और निवेश के उद्देश्यों के आधार पर चुने जाते हैं। चाहे आप तुरंत लाभ की तलाश में हों या दीर्घकालिक वृद्धि के लिए निवेश करना चाहते हों, विभिन्न ट्रेडिंग तकनीकों के अपने-अपने फायदे और नुकसान हैं। इस लेख में हम चार प्रमुख ट्रेडिंग प्रकार—Intraday, Delivery, Future & Option —की गहन जानकारी प्राप्त करेंगे और समझेंगे कि किस प्रकार का ट्रेडिंग आपके निवेश उद्देश्य के अनुरूप हो सकता है।

Types of Trading ग्राफिक जिसमें ट्रेडिंग के चार प्रकार (Intraday, Delivery, Future, Options) लाल-हरे बैकग्राउंड और कैंडलस्टिक चार्ट के साथ प्रदर्शित हैं। बाईं ओर एक पेन दिखाई देता है।

Intraday

Intraday Trading वह प्रक्रिया है जिसमें निवेशक एक ही व्यापारिक दिन के भीतर किसी स्टॉक या अन्य परिसंपत्ति को खरीदते और बेचते हैं। इसका मुख्य उद्देश्य दिन के अंदर ही मूल्य में होने वाले उतार-चढ़ाव से लाभ कमाना होता है।

विशेषताएं:-

– तेजी से निर्णय: बाजार में पल-पल बदलाव होते हैं; इसलिए तेज़ और सटीक निर्णय लेने की जरूरत पड़ती है। 
– टेक्निकल एनालिसिस का महत्व: चार्ट, पैटर्न और ट्रेंड का अध्ययन करके सही समय पर एंट्री और एग्जिट पॉइंट तय किए जाते हैं। 
– उच्च तरलता: अक्सर इंट्राडे ट्रेडिंग में उच्च मात्रा में लेन-देन होते हैं, जिससे स्टॉक की तरलता बनी रहती है।

फायदे:-


– त्वरित लाभ: छोटे-छोटे लाभों को जोड़कर दिन भर में अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। 
– लॉक-इन पोजीशन: चूँकि सभी पोजीशन दिन के अंत में बंद कर दी जाती हैं, इसलिए ओवरनाइट जोखिम से बचा जाता है।

नुकसान:- 

– उच्च जोखिम: अचानक बाजार में आए उतार-चढ़ाव से तुरंत बड़ा नुकसान भी हो सकता है। 
– मानसिक दबाव: लगातार मार्केट पर नजर रखने और त्वरित फैसले लेने से मानसिक थकान हो सकती है।

Delivery

डिलीवरी ट्रेडिंग में निवेशक किसी स्टॉक या परिसंपत्ति को खरीदकर उसे कुछ दिनों या महीनों तक होल्ड करते हैं। इसमें दीर्घकालिक लाभ के लिए कंपनी के फंडामेंटल्स और आर्थिक विकास को ध्यान में रखा जाता है।

विशेषताएँ:- 


– दीर्घकालिक नजरिया: निवेशकों को स्टॉक में लंबे समय तक निवेश करने का अवसर मिलता है, जिससे कंपनी की स्थिरता और विकास का लाभ उठाया जा सके। 
– कम शुल्क: बार-बार लेन-देन न करने के कारण ट्रेडिंग शुल्क अपेक्षाकृत कम होता है। 
– फंडामेंटल एनालिसिस: निवेश से पहले कंपनी की वित्तीय स्थिति, प्रबंधन तथा बाजार में उसकी स्थिति का गहन विश्लेषण किया जाता है।

फायदे:- 


– स्थिर और निरंतर रिटर्न: दीर्घकालिक निवेश से बाज़ार के उतार-चढ़ाव में भी स्थिर रिटर्न की संभावना रहती है। 
– टैक्स के लाभ: कई मामलों में दीर्घकालिक निवेश पर टैक्स लाभ भी उपलब्ध होते हैं। 
– जोखिम में कमी: छोटी अवधि के अस्थिरता का प्रभाव कम होता है।

नुकसान:-


– प्रतिक्रियाशीलता में कमी: अचानक आर्थिक मंदी या कंपनी के प्रदर्शन में गिरावट आने पर तुरंत प्रतिक्रिया नहीं दी जा सकती। 
– नकदी जरूरत: यदि अचानक अतिरिक्त नकदी की आवश्यकता हो, तो होल्ड किए गए स्टॉक्स तुरंत बेचने में कठिनाई हो सकती है।

Future Trading

फ्यूचर्स ट्रेडिंग एक डेरिवेटिव ट्रेडिंग का रूप है, जिसमें खरीदार और विक्रेता एक निश्चित तारीख पर, एक पूर्व निर्धारित कीमत पर, परिसंपत्ति की खरीद या बिक्री का अनुबंध करते हैं। यहाँ यह एक प्रतिबद्धता होती है, ना कि केवल अधिकार।

विशेषताएँ :-


– लीवरेज का इस्तेमाल: फ्यूचर्स में कम पूंजी लगाकर भी बड़े संख्यात्मक लेन-देन किए जाते हैं, जिससे पूंजी पर बड़ा प्रभाव पड़ता है। 
– हेजिंग का साधन: मौजूदा पोर्टफोलियो के जोखिम को कम करने के लिए फ्यूचर्स अनुबंधों का इस्तेमाल किया जाता है। 
– समयबद्धता: अनुबंध में निर्दिष्ट तिथि तक सभी शर्तों का पालन करना अनिवार्य होता है।

फायदे:- 


– कम पूंजी में बड़ा निवेश: लीवरेज होने के कारण कम निवेश में भी बड़े पोजीशन तैयार की जा सकती है। 
– स्पष्ट रणनीति: अनुबंध की समाप्ति तिथि और पूर्व निर्धारित कीमत के आधार पर लाभ और हानि दोनों का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है।

नुकसान:- 


– अत्यधिक जोखिम: यदि बाजार विपरीत दिशा में चला जाए, तो लीवरेज से नुकसान भी उतना ही बढ़ जाता है। 
– समय-संवेदनशीलता: अनुबंध समाप्ति के समय अचानक होने वाले बदलाव से नुकसान की संभावना रहती है।

Options

ऑप्शन्स ट्रेडिंग भी एक डेरिवेटिव ट्रेडिंग का रूप है, जिसमें निवेशक को एक निश्चित अवधि तक एक परिसंपत्ति को खरीदने (कॉल ऑप्शन) या बेचने (पुट ऑप्शन) का अधिकार मिलता है, लेकिन उन्हें ऐसा करने की बंधनकारी जिम्मेदारी नहीं होती। इसके बदले निवेशक एक प्रीमियम का भुगतान करते हैं।

विशेषताएँ:- 


– सीमित नुकसान, असीमित लाभ: खरीदार का नुकसान केवल प्रीमियम तक सीमित रहता है जबकि संभावित लाभ काफी अधिक हो सकता है। 
– रणनीतिक विविधता: विभिन्न ऑप्शन स्ट्रैटेजीज़ जैसे स्प्रेड, स्ट्रैडल और स्ट्रैंग्ल का उपयोग करके बाजार की किसी भी स्थिति में लाभ कमाया जा सकता है। 
– हेजिंग के साधन: मौजूदा निवेशों के खिलाफ जोखिम कम करने के लिए ऑप्शन्स का सहारा लिया जा सकता है।

फायदे:-


– निश्चित प्रीमियम के साथ ट्रेडिंग: निवेशक द्वारा दिए गए प्रीमियम से नुकसान सीमित रहता है। 
– विविध व्यापारिक रणनीतियाँ: ऑप्शन्स के माध्यम से अलग-अलग बाजार परिस्थितियों के अनुरूप रणनीतियाँ अपनाई जा सकती हैं। 
– मार्केट हेजिंग: मौजूदा पोर्टफोलियो में संभावित नुकसान को कम करने के लिए ऑप्शन्स एक प्रभावी उपकरण है।

नुकसान:-

 
– जटिलता: ऑप्शन्स ट्रेडिंग में रणनीति काफी जटिल होती है, जिससे शुरुआती निवेशकों के लिए इसे समझना और लागू करना मुश्किल हो सकता है। 
– समय घटक का प्रभाव: ऑप्शन का मूल्य समय के साथ घटता है, जिसे “टाइम डिके” कहा जाता है, यदि बाजार अपेक्षित दिशा में न बढ़े तो निवेश का प्रीमियम पूरी तरह से चला जा सकता है।

Stock Index

स्टॉक मार्केट इंडेक्स एक ऐसा सांख्यिकीय मापक है जो किसी विशिष्ट शेयर बाजार में सूचीबद्ध कंपनियों के सामूहिक प्रदर्शन को दर्शाता है। ये इंडेक्स न केवल बाज़ार की समग्र दशा का आकलन करने में मदद करते हैं, बल्कि निवेशकों को यह भी संकेत देते हैं कि आर्थिक परिदृश्य किस दिशा में अग्रसर है। भारतीय शेयर बाजार में सेंसेक्स, निफ्टी 50 और बैंक निफ्टी प्रमुख इंडेक्स हैं, जिनका अध्ययन करके निवेशक अपने निवेश निर्णयों में संतुलन और धैर्य बनाए रख सकते हैं।

Sensex

सेंसेक्स, जिसे बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज सेंसेक्स के नाम से भी जाना जाता है, भारत का सबसे पुराना और प्रतिष्ठित स्टॉक इंडेक्स है। इसकी स्थापना कई दशकों पहले हुई थी और यह भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रमुख खिलाड़ियों में से 30 शीर्ष बांडों या कंपनियों के प्रदर्शन को मापता है। इन कंपनियों का चुनाव भारतीय बाज़ार की स्थिरता और विकास को ध्यान में रखते हुए किया जाता है।

गणना की विधि
सेंसेक्स का मूल्यांकन फ्री-फ्लोट मार्केट कैपिटलाइजेशन विधि पर आधारित होता है, जिसमें केवल वो ही शेयर शामिल किए जाते हैं जो आम निवेशकों के पास उपलब्ध होते हैं। इस पद्धति से सेंसेक्स में शामिल कंपनियों के बाजार मूल्य में बदलाव सीधे तौर पर इंडेक्स के समग्र प्रदर्शन पर प्रभाव डालते हैं।

महत्व
सेंसेक्स भारतीय आर्थिक स्वास्थ्य का एक महत्वपूर्ण बारोमीटर है। जब सेंसेक्स में वृद्धि होती है, तो यह आर्थिक मजबूती का संकेत माना जाता है, जबकि गिरावट से मंदी या अस्थिरता की ओर इशारा हो सकता है। निवेशक, वित्तीय विश्लेषक और नीति निर्माता सेंसेक्स की निगरानी करते हुए बेहतर निवेश रणनीतियाँ विकसित करते हैं।

Nifty

निफ्टी 50, नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) द्वारा निर्मित एक प्रमुख इंडेक्स है, जिसमें देश की 50 सबसे बड़ी और प्रभावशाली कंपनियाँ शामिल होती हैं। इसे भारतीय शेयर बाजार का एक मजबूत बेंचमार्क माना जाता है। निफ्टी का पूरा नाम “National Stock Exchange Fifty” होने के नाते, यह विभिन्न औद्योगिक क्षेत्रों के प्रदर्शन का समग्र प्रतिबिंब प्रस्तुत करता है।

गणना की प्रक्रिया 
निफ्टी 50 भी फ्री-फ्लोट मार्केट कैपिटलाइजेशन विधि पर आधारित है। इसका अर्थ है कि कंपनियों के बाजार मूल्य में उनके फ्री-फ्लोट शेयरों (जो आम निवेशकों के पास उपलब्ध हैं) का ही योगदान दिखाया जाता है। इससे निवेशक को यह समझने में मदद मिलती है कि वास्तव में बाजार में कितनी कंपनी की हिस्सेदारी है और उनका वास्तविक प्रदर्शन कैसा है।

निवेशकों के लिए भूमिका
निफ्टी 50 का उपयोग विभिन्न वित्तीय साधनों जैसे कि इंडेक्स फंड्स और एक्सचेंज ट्रेडेड फंड्स (ETFs) में निवेश के लिए किया जाता है। यह इंडेक्स न केवल निवेशकों को व्यक्तिगत स्टॉक्स के जोखिम से बचाता है, बल्कि उन्हें पूरे बाजार के रुझानों के आधार पर सामूहिक निवेश का अवसर भी प्रदान करता है।

Bank Nifty

बैंक निफ्टी निफ्टी 50 का एक उप-इंडेक्स है, जो विशेष रूप से बैंकिंग और वित्तीय संस्थानों के प्रदर्शन को मापता है। चूंकि बैंकिंग क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण आधार है, बैंक निफ्टी के उतार-चढ़ाव का सीधा असर निवेशकों के मनोबल और बाजार के समग्र रुझानों पर पड़ता है।

गठन और गणना 
बैंक निफ्टी में प्रमुख बैंकिंग संस्थान शामिल होते हैं, जिनका प्रदर्शन भारतीय वित्तीय प्रणाली और मौद्रिक नीतियों से प्रभावित होता है। इसकी गणना भी फ्री-फ्लोट मार्केट कैपिटलाइजेशन पर आधारित होती है, जिससे यह इंडेक्स बैंकिंग सेक्टर की सटीक तस्वीर प्रस्तुत करता है।

निवेश रणनीति में भूमिका
जब भारतीय अर्थव्यवस्था में मौद्रिक नीति या बैंकिंग व्यवस्थाओं में परिवर्तन होते हैं, तब बैंक निफ्टी निवेशकों को एक स्पष्ट संकेत देता है। बैंकिंग क्षेत्र में निवेश करने वाले निवेशकों के लिए बैंक निफ्टी के प्रदर्शन का विश्लेषण अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है, क्यूंकि यह उनके संभावित लाभ और हानि का पूर्वानुमान लगाने में सहायक होता है।

ऐसे ही Sector wise कई Index बनाए हुए है जैसे – IT Sector, Auto Sector, Energy Sector, Pharma Sector, Metal Sector, Media Sector, FMCG, infra, Financial इत्यादि।

Trading Hour & Holiday

भारतीय बाजार सोमवार से शुक्रवार तक सुबह 9:15 AM से दोपहर 3:30 PM तक Trading के लिए आम लोगों के लिए खुली रहती है। शनिवार और रविवार को बंद रहती है। कभी कभी Special Trading Session खोला जाता है जैसे दिवाली में शाम 6 से 7, बजट के दिन अगर उस दिन शनिवार या रविवार हो तो। और कई त्योहारों पे इंडियन स्टॉक मार्केट बंद रहती है।

Trading Vs Investment

Trading एक सप्ताह दिन एक घंटा एक मिनिट के लिए होता है लेकिन Investment लंबे समय के लिए होता है।

Long term Investing

Long Term Investing में अच्छे शेयर को खरीद कर लंबे समय के लिए भूल जाना होता है। अगर कंपनी अच्छी होती है तो लंबे समय में मल्टीबैगर रिटर्न देती है। साथ में प्रॉफिट पे डिविडेंड भी हर साल देते जाती है। बार बार खरीद बिक्री के झंझट, ब्रोकज चार्ज बाकी सारे टेंशन से दूर रहा जा सकता है। लोगों को long term के लिए सोचनी चाहिए अगर आप मार्केट से सच में पैसा कमाना चाहते है और बिलेनियर बनना चाहते है तो।

Short Term Investing

Short Term Investing में ज्यादा रिस्क होता है। इससे लोग जल्दी से बिलेनियर बनना चाहते है लेकिन हर कोई नहीं बन सकता। अगर कोई अच्छे जानकार है तो 100 में से मात्र 10 लोग ही इससे पैसा बनाते है बाकि लोग डूबते है। इससे शेयर और डेरिवेटिव कुछ मिनिट, घंटा, दिन के लिए ही खरीदा जाता है। Future & Option Trading, Intraday Trading, Swing Trading इसमें आता है। इसमें एक फायदा होता है कि Overnight का टेंशन दूर होता है कि अगले दिन क्या होगा। लेकिन दिनभर ट्रेडिंग के कई लोग डिप्रेशन में चले जाते है। इसलिए इसको अवॉयड करना चाहिए।

Risk & Return

वित्तीय दुनिया में, जोखिम और प्रतिफल (Risk & Return) का गहरा संबंध होता है। निवेशक जब किसी संपत्ति में पैसा लगाते हैं, तो वे संभावित लाभ की आशा रखते हैं, लेकिन साथ ही जोखिम भी उठाते हैं। 

जोखिम (Risk) क्या है?


जोखिम वह अनिश्चितता है, जो निवेश के संभावित नुकसान को दर्शाता है। यह कई प्रकार का हो सकता है—बाजार जोखिम, क्रेडिट जोखिम, मुद्रास्फीति जोखिम आदि। उच्च जोखिम का मतलब है अधिक संभावना कि निवेश घट सकता है, लेकिन इसका एक दूसरा पहलू भी होता है। 

रिटर्न (Return) क्या है?

 
रिटर्न निवेश पर मिलने वाला प्रतिफल होता है। यह पूंजी वृद्धि, लाभांश, या ब्याज के रूप में हो सकता है। सामान्यतः, अधिक जोखिम लेने पर अधिक रिटर्न की उम्मीद होती है, और सुरक्षित निवेशों में कम रिटर्न मिलता है। 

जोखिम-प्रतिफल का सिद्धांत 
“हाई रिस्क, हाई रिटर्न” की अवधारणा बताती है कि अगर निवेशक अधिक लाभ चाहते हैं, तो उन्हें उच्च जोखिम उठाना पड़ेगा। लेकिन समझदारी भरा निवेश वह है जो इस संतुलन को ध्यान में रखते हुए किया जाए। 

कैसे सही संतुलन बनाएं?
– विविधता (Diversification): अलग-अलग संपत्तियों में निवेश करके जोखिम कम करें। 
– लंबी अवधि का नजरिया: समय के साथ जोखिम घटता है और अच्छे रिटर्न की संभावना बढ़ती है। 
– अपना जोखिम सहने की क्षमता समझें: हर निवेशक का जोखिम सहने का स्तर अलग होता है, जिसे ध्यान में रखना जरूरी है। 

Portfolio Diversification

Portfolio Diversification का मतलब है अपने निवेश को अलग-अलग क्षेत्रों में विभाजित करना। इसका मुख्य उद्देश्य है कि यदि किसी एक क्षेत्र में नुकसान होता है तो दूसरे क्षेत्र की मजबूती उस नुकसान को भर सके। उदाहरण के लिए, अगर आपने अपना सारा पैसा सिर्फ एक ही स्टॉक या सेक्टर में लगा दिया है और वह क्षेत्र नीचे गिरता है, तो आपकी पूंजी भी गंभीर रूप से प्रभावित होती है। लेकिन अगर आपने अपनी पूंजी को शेयर, बॉन्ड, रियल एस्टेट, सोना, ETF आदि में बाँट दिया है, तो किसी एक में गिरावट होने पर भी अन्यता आपके निवेश को संतुलित रख सकते हैं। इसलिए आप जब भी निवेश करे तो थोड़ा थोड़ा सभी सेक्टर में करे ताकि गिरावट पे आपको पूरा नुकसान न हो।

How to select Right Stock (सही शेयर चुनने के तरीके)

अगर आप अपने मेहनत से कमाए पैसों को सही जगह पे सही अध्ययन के साथ निवेश नहीं करते है तो आपको जिंदगीभर पछतावा होगा। आप अपना पूरा पैसा डूबा सकते है। इसलिए किसी भी शेयर में इन्वेस्ट करते है तो सबसे पहले उसपे सही तरीके से जांच पड़ताल कर ले।

Fundamental Analysis

फंडामेंटल एनालिसिस निवेश की दुनिया में एक ऐसी कला है, जिसकी मदद से किसी कंपनी के आंतरिक मूल्य का पता लगाया जाता है। आमतौर पर, यह प्रक्रिया कंपनी के वित्तीय बयानों, प्रबंधन, उद्योग में स्थिति और आर्थिक परिस्थितियों का गहन अवलोकन करने पर आधारित होती है। इसके जरिए निवेशक यह समझ पाते हैं कि कोई स्टॉक बाजार में जो भाव पर कारोबार कर रहा है, वह वास्तव में कितने मूल्यवान है।

Financial Statements: P&L, Balance Sheet

कंपनी के बैलेंस शीट, आय विवरण और नकदी प्रवाह विवरण फंडामेंटल एनालिसिस के मुख्य आधार हैं। ये दस्तावेज़ न केवल कंपनी की वर्तमान आर्थिक स्थिति को उजागर करते हैं, बल्कि उसकी प्रबंधन क्षमता, लाभ बढ़ाने की दिशा और ऋण संरचना जैसी अहम जानकारियां भी प्रदान करते हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि दीर्घकालिक निवेश के लिए कंपनी कितनी स्थिर और विश्वसनीय है।

P/E Ratio, ROE, Debt-to-Equity

PE Ratio (Price/Earnings Ratio)

PE Ratio यह दर्शाता है कि निवेशक एक कंपनी के प्रति कमाई (earnings) के लिए कितनी कीमत चुकाने को तैयार हैं। यदि कोई कंपनी PE Ratio में अधिक है, तो इसका मतलब हो सकता है कि बाजार कंपनी की भविष्य की उन्नति की उम्मीद करता है। वहीं, कम PE Ratio संकेत दे सकता है कि स्टॉक अपेक्षाकृत सस्ता हो, बशर्ते कंपनी के मूलभूत पहलू मजबूत हों। अक्सर 20 कम PE Ratio वाले शेयर अच्छे कहे जाते है लेकिन ये Sector पे भी निर्भर करता है।

ROE (Return on Equity)

ROE यह मापता है कि कंपनी अपने शेयरधारकों द्वारा प्रदान किए गए पूंजी का उपयोग कितना कुशलता से कर रही है। उच्च ROE यह संकेत करता है कि कंपनी निवेश पर उत्तम रिटर्न दे रही है, जिससे शेयरधारकों का विश्वास बढ़ता है। यह संकेतक निवेशकों को कंपनी के प्रबंधकीय कौशल और प्रतिस्पर्धात्मक स्थिति का अंदाजा लगाने में भी सहायक होता है। अगर ROE 15% से ज्यादा है तो वो शेयर अच्छे कहे जाते है।

Debt-to-Equity

Debt-to-Equity रेशियो बताता है कि कंपनी अपनी पूंजी संरचना में कितनी देनदारियां रखती है, और किस हद तक कंपनी ने उधार के बल पर अपनी गतिविधियों को विस्तारित किया है। यदि यह अनुपात अधिक है, तो कंपनी वित्तीय जोखिम में अधिक हो सकती है। इसके विपरीत, संतुलित अनुपात यह इंगित करते हैं कि कंपनी अपने विकास के लिए विवेकपूर्ण ढंग से ऋण का उपयोग कर रही है। अगर Debt to Equity 1 से नीचे है तो बेहतर माना जाता है लेकिन सेक्टर पर भी निर्भर करता है। अगर किसी कंपनी के पास कोई Debt नहीं है तो वो कंपनी अच्छी मानी जाती है।

Technical Analysis

टेक्निकल एनालिसिस बाजार की भावनाओं और कीमतों में छुपे पैटर्न को समझने का एक तरीका है। इस विधि में इतिहास में अपने आप प्रकट हुए मूल्य परिवर्तन, Chart Pattern और विभिन्न तकनीकी संकेतकों जैसे मूविंग एवरेज, RSI, और MACD के आधार पर भविष्य के रुझानों का अनुमान लगाया जाता है। यह तरीका निवेशकों और ट्रेडर्स को तेज़ और सूचित निर्णय लेने में मदद करता है।

Candalistick Pattern

कैब्डालिस्टिक पैटर्न, जिन्हें कब्बालिस्टिक पैटर्न भी कहा जाता है, गूढ़ता और रहस्य के प्रतीक हैं। इन पैटर्न्स में छिपे ज्यामितीय आकृतियाँ, आवर्ती प्रतीक और रंगों के संयोजन में गहरी आध्यात्मिकता झलकती है। यह कला पारंपरिक विचारधाराओं और रहस्यमयी ज्ञान के मेल से उत्पन्न होती है, जो हमें ब्रह्मांड के अंदर मौजूद अनदेखे संबंधों से जोड़ने का प्रयास करती है। 

Support & Resistance

Support और Resistance तकनीकी विश्लेषण के दो मूलभूत स्तंभ हैं जो निवेशकों और ट्रेडर्स को बाजार की भावनाओं और संभावित मोड़ों का संकेत देते हैं। Support वह स्तर होता है जहाँ कीमत गिरने पर रुकावट आती है क्योंकि खरीदार उस बिंदु पर प्रवेश करते हैं, जबकि Resistance वह स्तर है जहाँ कीमत बढ़ने पर ठहर जाती है क्योंकि विक्रेता सक्रिय हो जाते हैं। यह दोनों स्तर बाजार के भावनात्मक संतुलन और ऐतिहासिक मूल्य आंदोलनों का प्रतिबिंब होते हैं।

Types of Investment (शेयर बाजार में निवेश के प्रकार)

Types of Investment" टेक्स्ट के साथ एक हरे रंग का बुल (bull) और बैकग्राउंड में स्टॉक मार्केट का कैंडलस्टिक चार्ट दिखाई दे रहा है।

Equity

Equity निवेश में हम किसी कंपनी के शेयर खरीद उसका शेयर होल्डर बनते है। इसमें निवेश लंबे समय के लिए किया जाता है ताकि अच्छा रिटर्न मिल सके। इसमें जोखिम भी होता है अगर कंपनी का सिलेक्शन गलत हो गया और कंपनी डूब गई तो पूरा निवेश जीरो हो सकता है। लेकिन अगर कंपनी फंडामेंटली सही है तो बीच बीच में उतार चढ़ाव आते रहेंगे लेकिन लंबे समय के अच्छा रिटर्न देंगे। साथ में कंपनी प्रॉफिट पे डिविडेंड भी देती है।

Mutual Funds

Mutual Fund निवेश में पैसा लगाकर सो जाना होता है बाकि काम Fund मैनेजर करता है। फंड मैनेजर एक डाइवर्सिफाइड प्रोटोफिलियो बनाता है और ज्यादा से ज्यादा प्रॉफिट करवाने की सोचता है। ये भी लंबे समय के लिए होता है क्योंकि कंपाउंडिंग का फायदा इसमें होता है। इसमें SIP और lumsum दोनों कर सकते है। ये उनलोगों के लिए अच्छा विकल्प है जिनको मार्केट के बारे में न कोई ज्ञान है ना ही समय।

Derivatives: Future & Option

डेरिवेटिव्स वे अनुबंध होते हैं जिनका मूल्य किसी मौलिक परिसंपत्ति (जैसे शेयर, कमोडिटी या मुद्रा) पर आधारित होता है। फ्यूचर्स अनुबंध में आज पूर्व निर्धारित कीमत पर भविष्य में खरीद-बिक्री का वादा किया जाता है, जबकि ऑप्शन्स आपको खरीदने या बेचने का विकल्प प्रदान करते हैं। ये उपकरण जोखिम कम करने (हेजिंग) और अटकल लगाने दोनों उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं, लेकिन इनके बाजार में उतार-चढ़ाव के कारण व्यापारिक ज्ञान और सावधानी की आवश्यकता होती है।

Bonds

बॉन्ड्स एक प्रकार के ऋणपत्र होते हैं, जिनके तहत निवेशक सरकारी या कॉर्पोरेट संस्थाओं को उधार देते हैं और इसके बदले नियमित ब्याज (कूपन भुगतान) प्राप्त करते हैं। बॉन्ड्स आमतौर पर इक्विटी की तुलना में कम जोखिम वाले माने जाते हैं, क्योंकि वे स्थिर आय का स्रोत प्रदान करते हैं। हालांकि, ब्याज दरों में बदलाव और क्रेडिट जोखिम के कारण इनके मूल्य में भी उतार-चढ़ाव हो सकते हैं।

Conclusion

ये आर्टिकल Share Market Full Details Hindi आपको अच्छा लगा होगा। बहुत कुछ नया सिखने को मिला होगा। अतः आप अच्छे से समझ गए होंगे शेयर मार्केट के बारे में। अब आप आसानी से इस मार्किट में कदम रख सकते है बिना कोई भय के। और भी नॉलेज के लिए हमसे जुड़े रहे, आर्टिकल को अपने दोस्तों और परिवार से शेयर करें और अपना एक्सपीरियंस कमेंट बॉक्स में लिखे।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न FAQ

  1. शेयर बाजार में निवेश कैसे शुरू करे?
    शेयर बाजार में निवेश करने के लिए सबसे पहले demate अकाउंट बनाए बाजार के बारे में सीखे फिर निवेश करे।
  2. क्या शेयर बाजार एक जुआ है?
    नहीं, शेयर मार्केट जुआ नहीं है अगर आप लम्बे समय के लिए निवेश करते है तो। अगर आप एक दिन में अमीर होने की सोचते है तो वो जुआ है।
  3. कौन सी कंपनियों में निवेश करे?
    किसी भी कंपनी में निवेश करने से पहले उस कंपनी को समझे उसके वैल्यूएशन और फंडामेंटल्स देखे भविष्य में वो प्रॉफिट करेगा या नहीं सब निवेश करे।
  4. क्या Option Trading सही है?
    Beginners और जल्दी अमीर बनने की लालसा रखने वालों के लिए नहीं है।
  5. शेयर मार्केट में कितना निवेश करे?
    आप मार्केट में पैसा उतना ही लगाए जिसे खोने पे भी आपकी नींद और चैन उड़ न जाए।

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